Supreme Court’s historic decision: अगर आप सरकारी नौकरी में हैं या किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो सरकारी सेवा में कार्यरत है, तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जो लाखों कर्मचारियों की वरिष्ठता (सीनियरिटी) से जुड़े नियमों को स्पष्ट करता है। यह फैसला न केवल न्याय की भावना को दर्शाता है, बल्कि उन कर्मचारियों के हितों की भी रक्षा करता है जो पहले से ही अपने पद पर कार्यरत हैं।

कर्मचारी की स्वेच्छा से ट्रांसफर को ‘जनहित’ नहीं मानेगा कोर्ट

Supreme Court's historic decision: स्वेच्छा से ट्रांसफर लेने वाले सरकारी कर्मचारियों को नहीं मिलेगी पुरानी वरिष्ठता

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और मनोज मिश्रा शामिल थे, ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि कोई कर्मचारी अपनी इच्छा से ट्रांसफर की मांग करता है, तो उसे ‘जनहित में किया गया स्थानांतरण’ नहीं माना जा सकता। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि ऐसे कर्मचारी अपने पिछले पद की वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकते।

यह फैसला उस मामले पर आधारित था जिसमें एक स्टाफ नर्स ने मेडिकल कारणों से पद परिवर्तन की मांग की थी और कर्नाटक प्रशासन ने इसे स्वीकार करते हुए उनकी नियुक्ति 1989 में FDA (फर्स्ट डिवीजन असिस्टेंट) के रूप में की थी। हालांकि, बाद में नर्स ने अपनी पुरानी नियुक्ति की तारीख 1979 से वरिष्ठता की मांग की, जिसे हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल ने मान लिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलटते हुए कहा कि कर्मचारी ने पहले ही लिखित में यह स्वीकार कर लिया था कि उन्हें नई जगह पर सबसे जूनियर माना जाए।

पहले से कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी कर्मचारी को जनहित में ट्रांसफर किया जाता है तो वह अपनी पुरानी सीनियरिटी बनाए रख सकता है। लेकिन अगर वह स्वयं ट्रांसफर की मांग करता है, तो उसकी पुरानी वरिष्ठता खत्म मानी जाएगी, और उसे नई जगह पर सबसे जूनियर माना जाएगा। यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह स्पष्ट होता है कि ट्रांसफर के नियम सिर्फ एक व्यक्ति पर लागू नहीं होते, बल्कि पहले से कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों को भी बराबरी से देखा जाता है।

हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल ने की थी गलती, सुप्रीम कोर्ट ने सुधारा

कर्नाटक हाईकोर्ट और प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने नर्स के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि उनकी स्वेच्छा से ट्रांसफर को ‘जनहित’ में ट्रांसफर मान लेना कानूनी रूप से गलत है। कोर्ट ने साफ कहा कि अगर इस तरह की सीनियरिटी दी जाती है तो यह नई जगह पर कार्यरत कर्मचारियों के साथ अन्याय होगा।

लाखों सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा असर

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पूरे देश में काम कर रहे लाखों सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल बन सकता है। अब वे कर्मचारी जो अपनी सुविधा या निजी कारणों से ट्रांसफर की मांग करते हैं, उन्हें वरिष्ठता के लिहाज से नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्हें नई पोस्टिंग पर सबसे जूनियर माना जाएगा, भले ही उनकी सेवा कितनी भी पुरानी क्यों न हो।

ट्रांसफर से पहले समझें इसके नियम

Supreme Court's historic decision: स्वेच्छा से ट्रांसफर लेने वाले सरकारी कर्मचारियों को नहीं मिलेगी पुरानी वरिष्ठता

इस फैसले से यह सीख मिलती है कि सरकारी सेवा में कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति को ट्रांसफर संबंधी नियमों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। ट्रांसफर चाहे मेडिकल हो या पारिवारिक कारणों से, अगर वह स्वेच्छा से लिया गया है तो उसका प्रभाव आपकी सीनियरिटी पर भी पड़ेगा। ऐसे में किसी भी निर्णय से पहले सभी पहलुओं को समझना जरूरी है।

 डिस्क्लेमर: यह लेख सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए हालिया निर्णय और उससे जुड़ी सार्वजनिक जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी सामान्य जनहित के उद्देश्य से साझा की गई है। कर्मचारी किसी भी आधिकारिक निर्णय या प्रक्रिया के लिए अपने विभाग या सरकारी अधिसूचना से जानकारी प्राप्त करें।